डबल इंजन की सरकार का सच; 4 साल में नहीं बन पाई 2 किलोमीटर सड़क
चौथान समाचार 09 मार्च 2020
पट्टी चौथान का स्यूंसाल गांव आज भी सड़क सुविधा से वंचित है। वर्ष 2015-16 में मेरा गांव मेरी सड़क योजना के तहत गांव को को सड़क से जोड़ने के लिए 2 किलोमीटर सीसी रोड का निर्माण शुरू हुआ था। 35 लाख रूपये की इस लिंक रोड को मनेरगा के अंतर्गत बनाया जाना था। बजट तो पूरा हो गया है पर आज दिन इस लिंक रोड का निर्माण अधूरा पड़ा है। हालत ये है कि कोई भी गाड़ी इस रोड पर नहीं चली है पर यह जगह जगह से टूट चुकी है। कुल मिलाकर सरकारी धन बर्बाद हो गया और गांव वालों को कोई सुविधा नहीं मिली। इस मार्ग के निर्माण के लिए गड़ीगांव पंचायत क्षेत्र से सैकड़ों बांज के हरे भरे पेड़ों को भी काटा गया था।
सिपाहियों, शहीदों का गांव, पलायन की चपेट में
स्यूंसाल शहीदों और सिपाहियों का गांव है। इसकी आबादी लगभग 250 है। गांव में जहाँ 10 से ज्यादा भूतपूर्व सैनिक परिवार हैं वहीँ 6 जवान आज भी देश सेवा में तैनात हैं। स्यूंसाल गांव से ही दो जवान शहीद भी हुए हैं। 1987 में ऑपरेशन पवन के दौरान गांव के त्रिलोक सिंह बिष्ट वीर गति को प्राप्त हुए थे और फरवरी 2016 में गांव से गढ़वाल राइफल के जवान पूरन सिंह भंडारी का लद्दाख में ड्यूटी के दौरान निधन हो गया था। फिर भी गांव का सड़क संपर्क नहीं हो पाया है। ऐसे में गांववासियों को जरूरत का सारा सामान गांव ले जाने के लिए 2 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई चढ़नी पड़ती है। स्वास्थ्य आपातकाल की स्थिति में मरीज को पालकी, कुर्सी में बिठाकर मोटर मार्ग पर लाना पड़ता है। इन्हीं कारणों से ग्रामीणों पर आर्थिक नुकसान के साथ साथ शारारिक श्रम का बोझ बढ़ रहा है और युवा पीढ़ी गांव में सुविधाओं के आभाव होने से तेजी से पलायन कर रही है।
सर्वे पर सर्वे पर सड़क के आसार नहीं
35 लाख रूपये बेकार होने के बाद, पिछले दो वर्षों में गांव में 5 किलोमीटर मोटर मार्ग के लिए कई सर्वे हो चुके हैं। हाल में पेड़ों की कटाई भी हो रही है पर इस हिसाब से सड़क आने में सालों लग जायेंगे। ग्रामीणों का कहना है कि विभाग में दूरदर्शिता का आभाव है। उनके अनुसार 2000 के दौरन बनी उफरैंखाल-गणतखाल मोटर मार्ग पहले गांव से लगभग 500 मीटर की दुरी से जा रही थी पर बाद में यह अज्ञात कारणों से 2 किलोमीटर नीचे चली गयी। अगर उस मोटर मार्ग को बनाया जाता तो स्यूंसाल के साथ साथ आस पास के दर्जनों गांव सड़क से जुड़ जाते और आज जगह जगह आधे-अधूरे रोडों के लिए पहाड़ों को खोदना नहीं पड़ता। जानवरों के डर और मौसम की मार से गांव वाले दूरदराज के खेत छोड़ चुके हैं ऐसे में उनके सामने गांव के नजदीक बची उपजाऊ खेती को प्रस्तावित मोटरमार्गों से बचाने का वाजिब प्रश्न खड़ा है।
ना हो वनों, माटी, जल स्रोतों की अनदेखी
जगह जगह किस्तों में सड़क निर्माणों से क्षेत्र में भूस्खलन, मृदा क्षरण, पेड़ों के कटान और जलस्रोतों पर दुष्प्रभाव भी हो रहें है। अनियोजित सड़क योजनाओं के तात्कालिक और दीर्घकालिक पर्यावरण प्रभावों पर चिंतित भीम सिंह रावत का कहना है कि आज के समय गांवों को सड़कों से जोड़ना बुनियादी मांग और आवश्यकता बन गयी है पर ठोस निति, निगरानी के आभाव में बड़ी बड़ी मशीनों से पहाड़ों को तोड़ा जा रहा है, बड़े पैमाने पर पेड़ भी कट रहें हैं, माटी का कटान बढ़ रहा है और मलबे को बिना सुरक्षित निपटान के ढ़लान से सीधे नीचे गिराया जा रहा है जिससे जल स्रोत लुप्त हो रहे हैं और गदेरों में गाद व प्रदुषण बढ़ रहा है। उनके अनुसार जल वन से समृद्ध पहाड़ भी स्थायी विकास, आरोग्य स्वास्थ्य के लिए उतने ही अधिक आवश्यक है। ऐसे में मशीनों का न्यूनतम और मानव श्रम का अधिकतम उपयोग होना चाहिए जिससे पर्यावरण क्षति कम हो और ग्रामीणों को अधिक रोजगार मिलें। वे सरकार से अपील करते हैं कि गावों को सड़कों से अवश्य जोड़ें पर दूरदर्शी और वैज्ञानिक योजना बनाकर, नाकि चुनावी मुद्दों और ठेकेदारों को लाभ पहुँचाने के आधार पर।
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